एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों का मिलना बहुत जरुरी होता है, ये गुण कुंडली के द्वारा मिलाए जाते हैं। किसी भी मनुष्य की कुंडली उसकी जन्म तारीख, समय और स्थान के आधार पर बनाई जाती है। जन्म के समय गृह नक्षत्रों की स्थिति को देखते हुए ये कुंडली बनती है। जब लड़का-लड़की रिश्ता होता है, तो कुंडली मिले जाती है कि कितने गुण मिलते है। वर-वधु की कुंडली इसलिए मिलते है, ताकि वर वधू का आने वाला जीवन सुख-पूर्वक व्यतीत हो सके। तभी विवाह संपन्न किया जाता है, क्योंकि विवाह मिलान के लिए गुण मिलान आवश्यक माना जाता है। वैवाहिक दृष्टि से कुंडली मिलान इन पांच महत्वपूर्ण आधार पर किया जाता है- कुंडली अध्ययन,भाव मिलान, अष्टकूट मिलान, मंगल दोष विचार, दशा विचार। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है। अष्टकूट मिलान अर्थात आठ प्रकार से वर एवं कन्या का परस्पर मिलान को गुण मिलान के रूप में जाना जाता है।
वर्ण
वर्ण का निर्धारण चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमें 4(कर्क) ,8 (वृश्चिक) , 12 (मीन) राशियां विप्र या ब्राह्मण हैं 1(मेष ), 5(सिंह) ,9(धनु) राशियां क्षत्रिय है 2(वृषभ), 6(कन्या),10(मकर) राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3(मिथुन), 7(तुला), 11(कुंभ) राशियां शूद्र मानी गयी हैं।
वश्य
वश्य का संबंध मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर, और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है? द्विपदीय राशि के अंतर्गत मिथुन, कन्या, तुला और धनु राशि आती हैं। चतुष्पदी राशि के अंतर्गत मेष, वृषभ, मकर, जलचर राशि के अंतर्गत कर्क, मकर और मीन कीट राशि के अंतर्गत वृश्चिक राशि और वनचर राशि के अन्तर्गत सिंह राशि आती है।
तारा
तारा का संबंध वर-वधु दोनों के भाग्य से होता है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाए गए हैं- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है ,जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है। ऐसा ही कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन जाता है।
योनि
जब कोई भी मनुष्य जन्म लेता है तो वह किसी न किसी योनि में आता है। इन योनियों को अश्व, श्वान, गज जीवों से जोड़ा जाता है। इनकी गणना जन्म नक्षत्र के आधार पर की जाती है। कुछ योनियों को एक दूसरे का परम शत्रु माना गया है। इसे वर और कन्या के आपसी तालमेल से जोड़कर देखा जाता है।
ग्रह मैत्री
इसमें वर-वधू की चंद्र राशियों के स्वामी ग्रहों का मिलान किया जाता है। यदि चंद्र राशियों के स्वामी मित्र न हो तो विचारों में भिन्नता रहती है, जिसके कारण क्लेश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके आधार पर आपसी विश्वास और सहयोग की स्थिति का आकलन किया जाता है।
गण
जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन तरह के गण बताए गए हैं जिसमें देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण बताया गया है। यदि वर और कन्या का गण एक ही है तो इस बहुत शुभ माना जाता है। देव गुण और मनुष्य गण को समान माना जाता है। यदि दोनों में से किसी का देव गण और किसी का राक्षस गण हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इसके आधार पर आने वाले जीवन में कुटुम्ब के साथ संबंध और सामंजस्य का आकलन किया जाता है।
भकूट
भकूट मिलान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें वर और कन्या की कुंडली में परस्पर चंद्रमा की स्थिति का आकलन किया जाता है। यदि यह मिलान सही प्रकार से न किया जाए तो दाम्पत्य जीवन में मधुरता और प्रेम की कमी रहती है इसके साथ ही जीवन में किसी न किसी प्रकार से परेशानियां आती रहती हैं।
नाड़ी
व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ी का तीन तरह से वर्गीकरण किया गया है। मध्य, आदि और अंत्य नाड़ी। वर और वधू की नाड़ी एक नहीं होनी चाहिए। इसे संतान प्राप्ति से जोड़कर देखा जाता है।
गुण कैसे मिलते है
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि अगर किसी व्यक्ति के 18 से कम गुण मिलते हैं, तो विवाह होने की संभावना बहुत कम होती है। वहीं, अगर किसी व्यक्ति के 18 से 25 गुण मिलते हैं तो ऐसा होने विवाह के लिए अच्छा माना जाता है। अगर 25 से 32 गुण मिलते हैं तो यह विवाह के लिए उत्तम माने जाते हैं। अगर किसी के 32 से 36 गुण मिलते हैं तो ऐसे होने बहुत ही उत्तम माना जाता है। ऐसा विवाह सफल होता है।
- 18 से कम- विवाह योग्य नहीं अथवा असफल विवाह।
- 18 से 25- विवाह के लिए अच्छा मिलान।
- 25 से 32- विवाह के उत्तम मिलान, विवाह सफल होता है।
- 32 से 36- ये अति उत्तम मिलान है, ये विवाह सफल रहता है।
36 गुण मिलना सफल शादी की निशानी
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गुण मिलान तो कुंडली मिलान का एक छोटा-सा हिस्सा है। सिर्फ गुण मिलाना से किसी की शादी सफल होना या असफल होने तय नहीं माना जाता है। कई बार 36 के 36 गुण मिलने के बाद भी उनकी शादी सफल नहीं होती। ऐसा इसलिए क्योंकि गुण के अलावा कुंडली में बाकी ग्रहों की स्थिति भी देखी जाती है।
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कुंडली में 7वें घर विवाह स्थान होता है। कुंडली में 7वें घर से आपको यह भी पता लग सकता है कि आपका जीवनसाथी स्वभाव से कैसा होगा।
मंगल दोष की जाँच जरुरी
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि जब भी शादी के लिए कुंडली मिलाएं, तो मंगल दोष की जाँच कराना बहुत जरुरी है। अगर व्यक्ति की कुंडली में मंगल लग्न भाव से पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में होता है, तो ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति मांगलिक कहलाता है। अगर किसी मांगलिक की शादी अगर किसी बिना मांगलिक के हो जाएं, तो ऐसी शादी के टूटने की संभावना होती है।
वर-कन्या गुण से संबंधित प्रश्न
कुंडली में वश्य का अर्थ होता है कि वश करने योग्य। सिंह के अतिरिक्त सभी राशियाँ पुरूष राशियों के वश में हैं | जल राशियाँ( कर्क, मकर का उत्तरार्द्ध ,मीन ) नर राशियों ( मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्द्ध ,कुम्भ) का भक्ष्य हैं |
यदि किसी के आपस में 36 के 36 गुण मिल जाते है, तो उनका विवाह करना शुभ नहीं माना जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता के वैवाहिक जीवन में काफी दिक्कत झेलनी पड़ी थी।
अगर किसी व्यक्ति के 18 में से 25 गुण मिलते है, तो यह विवाह शुभ माना जाता है। अगर 25 में से 32 मिलते है, तो भी यह विवाह उत्तम माना जाता है। ऐसे ही विवाह सफल होते है।
पुरुषो के लिए 22 गुण होते है यह गुणसूत्रों का संयोजन होता है, व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक गुणों को निर्धारित करता है।
हाँ, वही सच है और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता है। मनुष्य की कुंडली में जो लिखा रहता है। वह उसके जीवन के संभावित मार्गों, अवसरों और चुनौतियों को दर्शाता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि जन्मकुंडली में लिखी हर एक घटना अपरिवर्तनीय है।