पितृ दोष में भी व्यक्ति को कालसर्प दोष की तरह ही फल भोगने पड़ सकते हैं। कई व्यक्ति की कुंडली में शुभ और अशुभ दोनों लाभ बनते है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शुभ योग बनते हैं। तो व्यक्ति को जीवन में सुख-सुविधाएँ और धन दौलत प्राप्त होती है। अगर व्यक्ति की कुंडली में ग्रह नक्षत्रों के संयोग से कोई अशुभ दोष का निर्माण होता है, तो ऐसे व्यक्ति का जीवन में संघर्ष करना पड़ता है और सफलताएं बहुत कम होती है। ज्योतिष शास्त्र में बताए गए दोषों में सबसे ज्यादा प्रभावी दोष कालसर्प दोष और पितृ दोष को माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब हमारे पूर्वजों की आत्माएं तृप्त नहीं होती, तो ये आत्माएं पृथ्वी लोक में रहने वाले अपने वंश के लोगों को कष्ट देती हैं। इसी को ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष कहा गया है।
कैसे बनता है कुंडली में पितृ दोष
ज्योतिष घटनाओं के हिसाब से जब किसी व्यक्ति की कुंडली के लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य मंगल और शनि विराजमान होते हैं, तो पितृदोष बनाते हैं. इसके अलावा कुंडली के अष्टम भाव में गुरु और राहु एक साथ आकर बैठते हैं, तो भी पितृदोष का निर्माण होता है। जब कुंडली में राहु केंद्र में या त्रिकोण में मौजूद होता है, तो पितृ दोष बनता है. इसके अलावा जब सूर्य, चंद्रमा और लग्नेश का राहु से संबंध होता है, तो जातक की कुंडली में पितृ दोष बनता है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों का अनादर करता है, या फिर उसकी हत्या कर देता है, तो ऐसे व्यक्ति को पितृ दोष लगता है।
पितृदोष के लक्षण
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष होता है, तो व्यक्ति अपने जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति के विवाह में देरी होती है, व्यक्ति की सगाई टूट सकती है, वैवाहिक जीवन में तनाव रहता है, ऐसी महिलाओं को गर्भधारण में समस्याएं आती हैं, बच्चे की अकाल मृत्यु हो सकती है और जीवन में कर्ज और नौकरी में परेशानियां आती रहती हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों के घर में या परिवार में आकस्मिक निधन या दुर्घटना हो सकती है। लंबे समय से किसी बीमारी के चलते परेशान रह सकते हैं। परिवार में विकलांग या अनचाहे बच्चे का जन्म हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को बुरी आदतों की लत भी लग सकती है।
पितृ दोष निवारण के उपाय
- सोमवती अमावस्या का दिन पितृ दोष निवारण पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस दिन पितृ दोष पूजा कराने से पितृ दोष दूर होता है।
- यदि आपकी कुंडली में पितृदोष आपके लिए बड़े कष्टों का कारण बन रहा है तो उससे मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन ‘सर्प सूक्त’ का पाठ उत्तम उपाय है।
- ऐसे व्यक्ति को अपने घर में हर अमावस्या पर श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करना चाहिए।
- प्रत्येक चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा के एक दिन पहले पीपल पर दूध चढ़ाना और भगवान विष्णु से प्रार्थना करना शुभ माना जाता है।
- ऐसे व्यक्ति को सवा किलो चावल लाकर रोज अपने ऊपर से एक मुट्ठी चावल 7 बार उतारकर पीपल की जड़ में डाल देना चाहिए। ऐसा लगातार 21 दिन तक करने से पितृदोष से राहत मिल सकती है।
- यदि कुंडली में पित्र दोष बन रहा हो, तब जातक को अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजन का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाना और रोज उनकी पूजा करके, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
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- पितृ दोष के उपाय के लिए व्यक्ति को काले कुत्ते को उड़द के आटे से बने वड़े हर शनिवार को खिलाने से शनि, राहु, केतु तीनों ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।
- प्रत्येक साल पढ़ने वाली पितृ अमावस्या पर या जिस तिथि को आपके पूर्वज की मृत्यु हुई है, उस तिथि पर पितृ दोष शांति विधिवत कराना भी पितृदोष को कम कर सकता है।
- पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष में पीपल के पेड़ में काला तिल डला हुआ दूध चढ़ाएं। साथ ही अक्षत और फूल अर्पित करके पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
- पितृपक्ष में रोजाना शाम के समय घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाना चाहिए। इससे भी पितृदोष दूर होता है और आपके जीवन की सभी बाधाएं दूर होने लग जाती हैं।
पितृ दोष से संबंधित प्रश्न
ऐसे में आपको पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में उनका तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म जरूर करने चाहिए। इसके साथ ही पितरों के निमित्त भोजन और जल निकालें व पितरों का आह्वान कर, उन्हें ये सभी सामग्री अर्पित कर दें। इससे पितरों की नाराजगी दूर हो सकती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितरों की शांति के लिए उनके नाम का भोजन व जल पितृ पक्ष में जरूर निकालना चाहिए। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध जरूर करना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान पितरों के नाम का दीया जलाना चाहिए।
पितृ दोष एक प्रकार का ऋण होता है जो पूर्वजों के कर्मों से जुड़ा होता है। पितृ दोष का प्रभाव कई पीढ़ियों तक रह सकता है, विशेष रूप से सात पीढ़ियों तक। पितृ दोष लगने से परिवार में लड़ाई-झगड़े और कष्ट का माहौल बनता है। पितरों का श्राद्ध कर्म आमतौर पर तीन पीढ़ियों तक के पूर्वजों के लिए किया जाता है।
पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान ठीक से न किया जाए तो परिवार पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है। इसके बाद उस परिवार के दिवंगत पूर्वज वहां रहने वाले परिवार के सदस्यों को कष्ट पहुंचाते हैं और इस कारण परिवार के सदस्यों का जीवन दूभर हो जाता है और परिवार में अशांति और क्लेश की स्थिति पैदा हो जाती है।
घर में पितरों का स्थान दक्षिण दिशा मानी जाती है। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण किया जाना अच्छा माना गया है।